एक अधूरी कविता
वो बात जो करनी थी हमें लेकिन रह गयी अधूरी, चलो पूरी करते हैं दूर रह कर, मैं कहता हूँ कविता अपनी ऒर से, तुम्हे दिखे कहीं तो पढ़ लेना अपनी समझकर। इस मन में जो प्रेम है, वो कहूंगा शब्दों में उलझा कर, तुम भी शब्दों में से मर्म निकाल कर, सहेज लेना दिल में और भुला देना कविता को। उन शब्दों में कहीं छुपा होगा दर्द भी, वो उतना ही गहरा है जब तुम साथ थे, व्यथित न होना उस भाव से, वरना हज़ारों आंखें सवाल करेंगी तुम्हारी आँखों से। हो सकता है कि तुम याद करो उन पलों को, जो साथ में जिये थे एक साथ कभी, तो किसी कागज़ पर मेरा नाम लिखकर हाथो में समेट लेना, मैं मानूँगा कि फिर से मैंने छुआ है तेरी हथेलियों को। जो बातें तुम कह नही पाई थी नज़रें झुकाकर भी, वो पढ़ ली थी मैंने शायद नासमझी में, उन्ही को ज़िंदा कर रहा हूँ इन कविताओं में, देखो इसमें ना "मैं" हैं ना "तुम" केवल "हम" है। ज़िन्दगी अधूरी है तेरे बिना, ये कविता भी अधूरी है, शब्दों के जाल बना कर रहा हूँ पूरी मैं, राह बनाता हूँ मैं मन के आसमाँ तले, झूठ है इसमें एक तेरा भी एक मेरा भी।