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एक अधूरी कविता

वो बात जो करनी थी हमें लेकिन रह गयी अधूरी, चलो पूरी करते हैं दूर रह कर, मैं कहता हूँ कविता अपनी ऒर से, तुम्हे दिखे कहीं तो पढ़ लेना अपनी समझकर। इस मन में जो प्रेम है, वो कहूंगा शब्दों में उलझा कर, तुम भी शब्दों में से मर्म निकाल कर, सहेज लेना दिल में और भुला देना कविता को। उन शब्दों में कहीं छुपा होगा दर्द भी, वो उतना ही गहरा है जब तुम साथ थे, व्यथित न होना उस भाव से, वरना हज़ारों आंखें सवाल करेंगी तुम्हारी आँखों से। हो सकता है कि तुम याद करो उन पलों को, जो साथ में जिये थे एक साथ कभी, तो किसी कागज़ पर मेरा नाम लिखकर हाथो में समेट लेना, मैं मानूँगा कि फिर से मैंने छुआ है तेरी हथेलियों को। जो बातें तुम कह नही पाई थी नज़रें झुकाकर भी, वो पढ़ ली थी मैंने शायद नासमझी में, उन्ही को ज़िंदा कर रहा हूँ इन कविताओं में, देखो इसमें ना "मैं" हैं ना "तुम" केवल "हम" है। ज़िन्दगी अधूरी है तेरे बिना, ये कविता भी अधूरी है, शब्दों के जाल बना कर रहा हूँ पूरी मैं, राह बनाता हूँ मैं मन के आसमाँ तले, झूठ है इसमें एक तेरा भी एक मेरा भी।

20 years : A personal note

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आज मेरे पिता की पुण्यतिथि है और उनको गए हुए पूरे 20 साल हो गये । मैं उस समय सिर्फ 18 साल का था और जीवन के प्रवाह के साथ जा रहा था, उस वास्तविकता को समझे या जाने बिना जो उस दिन मुझसे टकराने जा रही थी।  मैं ग्रेजुएशन कर रहा था और बीसीए के तीसरे सेमेस्टर में था। उस दिन जन्माष्टमी का त्योहार था और मेरे पिता अस्पताल में जिंदगी से जूझ रहे थे। वो उसी महीने राखी पर भी आये थे और तबियत थोड़ी खराब थी लेकिन बिना पूरा इलाज कराए छुट्टी न होने की बात कहकर वापस चले गए। लेकिन जब वो 22 अगस्त की रात को वापस आये तो रेलवे स्टेशन पर उनसे बात करने की कोशिश की तो उन्होंने मुझे पहचाना नही। मैं थोड़ा सहम गया, लेकिन हिम्मत करके उन्हें सीधा हॉस्पिटल ले गया। जहां डॉक्टर ने उन्हें एडमिट किया और कुछ टेस्ट भी कराए जिनकी रिपोर्ट अगले दिन आनी थी, लेकिन वो रिपोर्ट् उनकी मृत्यु के बाद ही आयी। दोपहर के लगभग 1-2 बजे का वक़्त था जब डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। शायद उस दिन उन्होंने हार मान ली थी हर उस चीज से जो वो सच होते देखना चाहते थे। मैं उस दिन जी भरकर रोया भी नही क्योंकि मुझे वो सब ...

तुम ही कहो ये शहर किसका है

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  इन बंद रहते दरवाजो के पीछे कितनी उम्मीदें नाउम्मीद हुई, हंसी ठहाकों की सुध नही, मुलाकातें अब झूठी मुस्कान में तब्दील हुई, असली नकली समझना मुश्किल क्योंकि नक़ाब के पीछे चेहरा है, पत्थर को पूजे इंसान को मारे , वैराग्य और ज्ञान भी यहां कोरा है। तुम ही कहो ये शहर किसका है। आशियाँ बनाने चले थे जो, वो कमरों में रोते हैं छुप कर, इंसान भागे दिन-रात समय के जैसे, अपना समय ही जाता भूल, सड़कों पर जगमग उजाला, मन मे अंधेरा हर पल, समय और अंधेरा ही चुभता दिल में जैसे निरंतर रहे कोई शूल तुम ही कहो ये शहर किसका है। आंखों में सपने बड़े, हम चले थे शहर की ओर, वो स्वप्न दूर कहीं अब, जो देता है हर आशा को तोड़, पतंग सा मन जो छूना चाहे आसमान को, पर मन उचाट उम्मीद के पंख ठिठके, डोर भी छोटी जो खींचे कोई और तुम ही कहो ये शहर किसका है।

मैं हूँ भी और नही भी....

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  ये बारिश की बूंदें जो गिरी हथेलियों पर, दिल मे बसे जज्बातों को गीला कर गई, बुलबुले पानी में बनते, लेकिन हैं ये कल्पित, बुलबुला हूँ शायद, मैं हूँ भी और नही भी... बादलों के बदलते आकार हर पल, जैसे बदलते स्वप्न हो किसी बालक के। चलते साथ हो पालक जैसे, जो ठहरे थोड़ा तो समझूं, आकार हूँ शायद, मैं हूँ भी और नही भी... वृद्ध सा नतमस्तक जग जब गिरे धरा पर, विरह अभ्र से लाजिमी, जो शीतल करना हो धधक भू की खलिहानों में कोंपल हों, मन में विचार के मानिंद, विचार हूँ शायद, मैं हूँ भी और नही भी... बूंद का भविष्य क्या जब गिरे वो नभ से, सीप में हो तो मोती भी और गंगा में हो तो अमृत भी, तालाब में है तो विराम, और दरिया में है तो वेग भी। भविष्य हूँ शायद, मैं हूँ भी और नही भी...

Happy Friendship Day: My viewpoint

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सच्ची दोस्ती की कोई परिभाषा नहीं होती, या सच कहा जाये तो दोस्ती को परिभाषित करना बहुत मुश्किल है और व्याख्या करना शायद और भी मुश्किल है।  लेकिन एक लेख लिखने की कोशिश तो की ही जा सकती है।   दोस्ती मेरी नज़र में एक अहसास है, और इसका अहसास बहुत मीठा और सरल है। अगर इसके मीठेपन की तुलना की जाये तो शायद ये चाय की चुस्की में उस मिठास की तरह है जिसका अहसास तब होता है जब चाय में कोई शक्कर डालना भूल जाये। दोस्ती का मीठापन भी उसी तरह है, आपको उसकी कमी तब खलती है जब वह मौजूद नहीं होता। और जब वो होता है तो आप आनंद में रहते हैं और चाय और दोस्ती का आनंद लेते है। मेरे लेखों में चाय और दोस्तों का जिक्र अक्सर आता है और उसके पीछे ये वजह है की मुझे दोनों ही बहुत पसंद हैं और उनकी मेरी ज़िन्दगी में बहुत अहमियत है।   हम अपने जीवनकल में कई रिश्ते निभाते है।  पिता, पुत्र, माँ , बेटी, पति, पत्नी, भाई, बहन सबसे अहम् रिश्ते हैं लेकिन जो रिश्ता दोस्ती का है उसकी बराबरी की ही नहीं जा सकती और मैं उसका एक उदहारण देता हूँ। मैंने कई लोगो को देखा है जिनके माँ-बाप नहीं है या भाई-बहन नहीं ह...

When Audience went wrong - Part I

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Top 10 Hindi Movies of last Decade (2010-2019) which failed at BO  First thing first, It has nothing to do with what critics said about the movie or how much the movie has earned at Box-office(BO). This is an entirely personal list and I have rated based on how I felt after watching the movie and how it affected me over a period of time.  There were a few movies which I liked but they were liked by many others too and found their audience so you may not find those films on this list. Most of these films failed at Box-office and were not popular in the mainstream. So without wasting time lets start. 1. MASAAN (2015) Cast : Richa Chaddha, Pankaj Tripathi, Sanjay Mishra, Vickey Kaushal, Shweta Tripathi Director : Neeraj Ghaywan Synopsis : Four lives intersect along the Ganges: a low caste boy hopelessly in love, a daughter ridden with guilt of a sexual encounter ending in a tragedy, a hapless father with fading morality, and a spirited child yearning for a family, long to e...

दिन और रात

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सुबह चाय की प्याली तेरी जब चर्चा करे, होठों की छुअन जब प्याली पर हो, अवचेतन मन मे चेतना हो जैसे, और फिर तेरा जिक्र मन मे गहरा जाये। दोपहर करे प्रतीक्षा तेरी, अरुणाई सी खिले, हरारत तेरी धड़कनों में स्पंदन जैसी जीवित, अल्प परछाई, लिप्त सत्यतता से, आसक्त हूँ अतृप्त नहीं , लेकिन अंतर्नाद है विस्मित। सांझ में अस्तित्व तेरा जब दे आहट आसमाँ में, सामर्थ्य शाम की, रात और दिन को पृथक करे, मंद होता प्रकाश, आशा किंचित, दो नयन जैसे मिले नही, पर साथ रहे। रात स्वप्न में, तेरे साये का अहसास, उस तिमिर में तस्वीर एक धुंधली सी, जुस्तजू मिलन की जो निरर्थक, कहकशां नवस्वप्न है तम में।