20 years : A personal note



आज मेरे पिता की पुण्यतिथि है और उनको गए हुए पूरे 20 साल हो गये । मैं उस समय सिर्फ 18 साल का था और जीवन के प्रवाह के साथ जा रहा था, उस वास्तविकता को समझे या जाने बिना जो उस दिन मुझसे टकराने जा रही थी।  मैं ग्रेजुएशन कर रहा था और बीसीए के तीसरे सेमेस्टर में था। उस दिन जन्माष्टमी का त्योहार था और मेरे पिता अस्पताल में जिंदगी से जूझ रहे थे।

वो उसी महीने राखी पर भी आये थे और तबियत थोड़ी खराब थी लेकिन बिना पूरा इलाज कराए छुट्टी न होने की बात कहकर वापस चले गए। लेकिन जब वो 22 अगस्त की रात को वापस आये तो रेलवे स्टेशन पर उनसे बात करने की कोशिश की तो उन्होंने मुझे पहचाना नही। मैं थोड़ा सहम गया, लेकिन हिम्मत करके उन्हें सीधा हॉस्पिटल ले गया। जहां डॉक्टर ने उन्हें एडमिट किया और कुछ टेस्ट भी कराए जिनकी रिपोर्ट अगले दिन आनी थी, लेकिन वो रिपोर्ट् उनकी मृत्यु के बाद ही आयी। दोपहर के लगभग 1-2 बजे का वक़्त था जब डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। शायद उस दिन उन्होंने हार मान ली थी हर उस चीज से जो वो सच होते देखना चाहते थे। मैं उस दिन जी भरकर रोया भी नही क्योंकि मुझे वो सब बुरे सपने सरीखा लग रहा था।

मेरे पिता छत्तीसगढ़ के छोटे से कस्बे में पोस्टेड थे और सरकारी नौकरी करते थे। वो हर महीने 3-4 दिन के लिए हमारे पास आते थे और वापस चले जाते थे। ये रूटीन सालों से था क्यूंकि हम सब आगरा में रहते थे और पिताजी चाहते थे कि हम एक बेहतर ज़िन्दगी जीयें और वो हमें अपने साथ उस पिछड़े इलाके में नही रखना चाहते थे जहां ना रोज़गार था, ना अच्छे स्कूल और ना स्वास्थ्य सेवाएं। वो 3-4 दिन हम सभी के लिए बड़े अनोखे होते थे और घर के कई सारे "नॉर्म्स" बदल जाते थे। मैं सन 1988-1992 तक पिता के साथ ही रहा था और उसके बाद पिताजी के साथ हर महीने के वो 3-4 दिन ही नसीब में थे। उनका 2-3 सालो में रिटायरमेंट भी होने वाला था तो कहीं मन में ये ख्याल था कि कुछ सालों की बात और है और फिर सारे पुराने हिसाब बराबर कर लेंगे। लेकिन वो हुआ नही और भाग्य में कुछ उतार चढ़ाव और लिखे थे, मेने ये 20 साल उन छोटी छोटी बातों को याद करके गुज़ारी है। लगता है कि ऐसा कुछ भी पता होता कि वो इतनी जल्दी चले जायेंगे तो उन पलों को बेहतर बनाकर उन्हें कुछ खुशी देने की कोशिश करता जो उनके कठिन जीवन मे शायद ही कभी मिली हो। 

उनकी असमय मृत्यु ने मेरे अंदर से मृत्यु के डर को खत्म किया और मुझे अपनी ज़िंदगी ही बेमानी लगने लगी। लोगों का नाम लिए बिना ही कहूंगा लेकिन उसके बाद ज़िन्दगी में अच्छे बुरे लोगो की पहचान होने लगी। आपके साथ हरदम खड़े होने वाले लोग चंद ही होते हैं, मैंने ऐसे ही लोगो का सहारा लेकर आगे बढ़ने की कोशिश की क्योंकि उसके बाद मुझे हर पल सही गलत बताने वाला मार्गदर्शक तो जा चुका था। मैं आज 40 की उम्र के पड़ाव की तरफ बढ़ चला हूँ लेकिन अभी बहुत नादानियाँ है जो मैं करना चाहता हूँ, कुछ गलतियां करना चाहता हूँ, बहुत कुछ एक्स्प्लोर करना चाहता हूँ लेकिन डर की वजह से नही कर पाता। आज भी जब ये सब लिख रहा हूँ तो भी निर्णय लेने की पशोपेश में फसा हुआ हूँ लेकिन निर्णय को कल पर टाल कर हर आज को खत्म करता जा रहा हूँ।

पिता का साथ न होने से क्या बदल जाता है वो आप तभी समझ सकते हैं जब वो आपके साथ न हो। "मैं हूँ ना" का जो अहसास होता है आपकी ज़िंदगी मे, जब वो चला जाता है तो आपके के निर्णय स्वतः ही बदल जाते हैं ये जानकर कि आप कई सारे जोखिम तो उठा ही नही सकते। कई विकल्प जोखिम भरे होते हैं और वो आपकी ज़िंदगी बदल सकते हैं लेकिन हमेशा ही "सेफ" कदम उठाना आपकी मजबूरी हो जाती है। मैं अपने आसपास के लोगों मे "फादर फिगर" तलाशता रहा लेकिन सच ये है कि ओस से प्यास नही बुझती। आज जब शाम को अपने काम से वापस आता हूँ तो मन होता है कि काश कोई होता जिस से मैं बात करके अपनी कठिनाईयां बताता या मन हल्का करता या मार्गदर्शन लेता। एक इंसान के तौर पर मैं आज अपना सच ही स्वीकार ही नही कर पा रहा हूँ और कई सारी परतें चढ़ाकर लोगो को एक अलग सच बताता हूँ जिस से कि लोग भ्रम में रहें । शायद वो भ्रम ही उनके लिए बेहतर है ये सोचकर। वो बिना परतों वाला सच शायद एक पिता के साथ ही साझा किया जा सकता है जो अब मुमकिन नही है मेरे लिए। अपने झूठ में जीना ही अब नियति बन गयी है मेरी जिसे मैंने सच मान लिया है।

अब जब आपसे मुलाक़ात होगी किसी और जहां में तब सारे सवाल करूंगा और पहला सवाल होगा "इतनी जल्दी क्यूँ"



टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
Yehi sachhai hmari bhi hai,mere papa ko bhi 20 saal ho gaye hai,hm aj bhi kisi na kisi roop mein face kr rahe hai.
:Madhu
Mradul ने कहा…
Wo parivar me pahli asamay mrityu thi aur sabke liye bahut dukhad ghadi thi.. abhi pichhale kuchh salo me esi hi kuchh aur dukhad asamay mrityu hui he... insan ka Jeevan aur Mrityu pe koi control nahi he....
Tauji jaise loving and caring insan the, unki jaroorat sab ko hoti he..Ese log bahut kam hote he jo Jeevan ki har responsibility har role ko 100% imandari Se nibhate he.. Par Tau ji hamesha ideal the.. Nishchay hi unki jaroorat kahi jyada hogi Jan bhagwan me itna kathor nirmay liya hoga...And his soul will be satisfied to see you successful.

Agreed that no one can fulfill father’s place. But there are people around you to listen you, stand with you and support you whenever required.
God bless you!!!

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