Happy Friendship Day: My viewpoint


सच्ची दोस्ती की कोई परिभाषा नहीं होती, या सच कहा जाये तो दोस्ती को परिभाषित करना बहुत मुश्किल है और व्याख्या करना शायद और भी मुश्किल है।  लेकिन एक लेख लिखने की कोशिश तो की ही जा सकती है।  

दोस्ती मेरी नज़र में एक अहसास है, और इसका अहसास बहुत मीठा और सरल है। अगर इसके मीठेपन की तुलना की जाये तो शायद ये चाय की चुस्की में उस मिठास की तरह है जिसका अहसास तब होता है जब चाय में कोई शक्कर डालना भूल जाये। दोस्ती का मीठापन भी उसी तरह है, आपको उसकी कमी तब खलती है जब वह मौजूद नहीं होता। और जब वो होता है तो आप आनंद में रहते हैं और चाय और दोस्ती का आनंद लेते है। मेरे लेखों में चाय और दोस्तों का जिक्र अक्सर आता है और उसके पीछे ये वजह है की मुझे दोनों ही बहुत पसंद हैं और उनकी मेरी ज़िन्दगी में बहुत अहमियत है।  

हम अपने जीवनकल में कई रिश्ते निभाते है।  पिता, पुत्र, माँ , बेटी, पति, पत्नी, भाई, बहन सबसे अहम् रिश्ते हैं लेकिन जो रिश्ता दोस्ती का है उसकी बराबरी की ही नहीं जा सकती और मैं उसका एक उदहारण देता हूँ। मैंने कई लोगो को देखा है जिनके माँ-बाप नहीं है या भाई-बहन नहीं हैं या जीवनसाथी नहीं है, लेकिन मेने कोई इंसान नहीं देखा जिसका कोई दोस्त ना हो। इसका मतलब बाकि सभी रिश्तो के बिना आप जी सकते हैं या विकल्प तलाश सकते हैं लेकिन एक सच्चे दोस्त के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। बाकी रिश्ते आपको बने बनाये मिलते हैं और दोस्त आप खुद चुनते हैं। आप चुनते हैं, आप उनके साथ वक़्त गुजारते हैं, समय पर परखते हैं, विश्वास जताते हैं और समय के साथ साथ आपकी दोस्ती गहरी होतीं जाती है। आपके जीवनकाल में कई पड़ाव आते हैं और आप अलग अलग पड़ाव पर अलग अलग दोस्त बनाते हैं लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि ज्यादातर जो दोस्त आपकी २०-३० की उम्र में बनते हैं वो दीर्धकालिक होते हैं।  

जिस इंसान का सच्चा मित्र होता है तो वह भाग्यशाली है क्योंकि सच्ची मित्रता खुशनसीब लोगो को प्राप्त होती है।मित्रता के मामले में मैं हमेशा ही खुशनसीब रहा हूँ।  जब मैं कक्षा २ में था तब मेरा एक मित्र हुआ करता था जिसका नाम प्रकाश था।  वह विकलांग था और मेरे घर से करीब ५ मिनट की दूरी पर रहता था।  हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे और हमारा स्कूल करीब २ किलो मीटर दूर हुआ करता था।  मैं रोज सुबह अपने कंधो का सहारा देकर उसको घर से स्कूल और स्कूल से घर लाया करता था। वह सबसे होनहार छात्र था उस क्लास में और हमेशा प्रथम पायदान पर आता था। मेने उस स्कूल में दूसरी कक्षा में ही दाखिला लिया था। मैं शुरुआत में ज्यादातर तीसरा या चौथा स्थान प्राप्त करता था। लेकिन फाइनल एग्जाम में मैं प्रथम आया। ना हम में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा थी ना ईर्ष्या। वो ४ साल तक मेरा दोस्त रहा और पिताजी के ट्रांसफर की वजह से मुझे ५वी कक्षा के बाद उसको अलविदा कहना पड़ा , वह छत्तीसगढ़ का एक छोटा सा क़स्बा था और अनायास ही याद आ जाता है।  मुझे आज तक उसकी कोई खबर नहीं है लेकिन वह आज भी मेरी यादों में है। आज जब उसका जिक्र आरहा है तो आँखें स्वतः ही नम हो चली है। वहाँ मेरे कई और मित्र हुआ करते थे जिनके नाम और हलकी छवि मेरी आँखों में आज भी है।  

उसके पश्चात मेरे कुछ अच्छे दोस्तों में प्रशांत , विवेक, मंजुला , दिव्या और अभिषेक सगर आये जिनके साथ मेरी दोस्ती तकरीबन २ साल रही।  मेरी उम्र तकरीबन १२-१३ साल की थी उस समय।  उस समय मैं अपने माता पिता से अलग रहता था तो उन लोगो ने मुझे बहुत कुछ सिखाया।  हमने साथ में बहुत मस्ती भी की और पढाई भी। मुझे स्वाबलंबी बनाने में उनका बड़ा योगदान रहा,  वह मेरे जीवन की कठिनाईयों से वाक़िफ़ थे और उनके साथ बिताये पल मेरे लिए किसी भी तरह से कमतर नहीं हैं। और फिर किन्ही और परिस्तिथियों की वजह से मुझे उस जगह को भी अलविदा कहना पड़ा। तुम सभी बहुत याद आते हो लेकिन कहाँ हो पता नहीं ।  

उसके बाद लगभग १६-१७ साल की उम्र में मेरे दोस्त बने नरेश, सोमेश, अश्वनी गौतम, वरुण।  नरेश और सोमेश तो आज भी मेरे जीवन के पलों में जुड़े हुए हैं लेकिन वरुण और अश्वनी गौतम के साथ लम्बे समय से कोई सम्बन्ध नहीं है। हमने क्लास और ट्यूशन के अलावा शायद ही कभी साथ पढाई की हो। इन लोगो से मिलने से पहले मेरे अंदर बहुत निराशा थी ज़िन्दगी को लेकर लेकिन इन लोगो के साथ आने से कटुता कुछ कम हुई मेरी। हमने साथ में मूवी देखी, क्रिकेट देखा, पॉलिटिक्स पर चर्चा की, लड़े और झगड़े भी लेकिन हम साथ साथ समझदार भी हुए।  मेरे पिता का देहांत २००० में हुआ और मेरे जीवन को सही दिशा में ले जाने में नरेश और सोमेश का बड़ा योगदान है वर्ना उस मोड़ पर मैं भावनात्मक और आर्थिक तौर पर टूट चूका था और महज १९ साल का था। ये अगर उस वक़्त मेरे साथ नहीं होते तो जीवन मैं मेने क्या किया होता पता ही नही। जब उस वक़्त का जिक्र आया है तो अपने भाई आशीष का भी जिक्र करूंगा जो भाई से ज्यादा मेरा दोस्त रहा है , उसका साथ होना भी मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ।    

और फिर अपने परास्नातक की पढाई के लिए मेरा दिल्ली आना हुआ और मेने अपने ज़िन्दगी के सबसे यादगार और अच्छे पल यहां गुज़ारे, ये पल यादगार केवल और केवल अच्छे दोस्तों की वजह से थे वर्ना ये शहर किसी के लिए भी आसान नहीं है।  अभिषेक, रितेश, सौरभ, चंचल, मिनाक्षी, पारुल, रजनी, सोनू, शिविरा, अमित, तेज , गौरव, नरेश के साथ बिताये ये ३-४ साल बेमिसाल थे।  उस वक़्त नहीं लगता था कि जब हम अपनी अपनी ज़िन्दगियों में कभी खो जायेंगे और एक दूसरे के लिए वक़्त नहीं होगा।  उस वक़्त हम लोग आपस में इतने अटैच्ड थे कि हमें बाकि सब बेमानी लगता था।  ना कल कि फिक्र ना पढाई कि चिंता।  हमने बहुत झगड़े किये और फिर एक हो गए।  किस्से इतने हैं कि २-४ ब्लॉग इस पर ही लिखे जा सकते हैं।  इनमे से कई दोस्त मेने वक़्त के साथ खो दिए, या तो अपने अहंकार की वजह से या वक़्त ना देने की वजह से। कभी कटुता की वजह से तो कभी अपरिक्तत्वता की वजह से। और जब पीछे मुड़ के देखता हूँ तो लगता है कि शायद मैं सही कर सकता था लेकिन उस वक़्त सही निर्णय ना लेने कि वजह से मेने रिश्तो में दरार आ जाने दी।  वक़्त के साथ आप सीख तो जाते हैं लेकिन कई चीजे सही नहीं की जा सकती।  

जिन सभी नामो का मैंने जिक्र किया है उनमे से कुछ अभी भी मेरे अच्छे दोस्त हैं और वो मेरे दोस्त इसीलिए हैं क्यूंकि वो बहुत बेहतरीन इंसान हैं वर्ना मुझ जैसे जटिल और कठिन व्यक्ति के साथ दोस्ती निभाना आसान नहीं है जिसने रिश्ते बनाये रखने के लिए शायद ही कभी कोशिश की हो।  मेरे साथ बने रहने के लिए शुक्रिया, मेरे अच्छे दोस्त होने के लिए शुक्रिया।  काश मैं भी आप लोगो जितना ही अच्छा होता और आप भी शायद गर्व से कह पाते कि मैं आपका अच्छा दोस्त हूँ/था।  

दोस्ती, शुद्ध और पवित्र मन का मिलन होती है। एक बेहद उत्कृष्ट अनुभूति, जिसे पाते ही तनाव और चिंता के सारे तटबंध टूट जाते हैं। उलझनों की जंजीरें खुल जाती है। दोस्ती एक ऐसा आकाश है जिसमें प्यार का चांद मुस्कुराता है, रिश्तों की गर्माहट का सूर्य जगमगाता है और खुशियों के नटखट सितारे झिलमिलाते हैं। एक बेशकीमती पुस्तक है दोस्ती, जिसमें अंकित हर अक्षर बहुमूल्य और तकदीर बदलने वाला है। "

इसे अधूरा ही छोड़ रहा हूँ  क्यूंकि अब जज़्बात भारी हो चले हैं।  

Happy friendship day

टिप्पणियाँ

ritsri.in ने कहा…
व्यक्तिगत अनुभवो के आधार पर मित्रता को बहुत ही सहज भाव में परिभाषित किया है तुमने, पर शायद तुम ये लिखना भूल गए की तुम भी एक बेहतरीन इंसान हो तभी तो तुम्हारे इतने सारे मित्र है।और मुझे ये कहने में जरा सी भी संकोच नहीं है कि तुम मेरे कुछ अच्छे मित्रों में से एक हो।

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