क्या ज़िन्दगी से बड़ा कोई गुरु है।





क्या ज़िन्दगी से बड़ा कोई गुरु है। शायद नही। सामान्यत: जिन्हें हम गुरु कहते हैं वो पाठ पढ़ाते है और परीक्षा लेते हैं। उस परीक्षा में या तो आप उत्तीर्ण होते हैं या अनुत्तीर्ण। ये एक नियम है जिस से हम सब परिचित हैं अपने स्कूल के समय से। ज़िन्दगी इस से थोड़ी जुदा है, वो परीक्षा लेती है हर पल और एक नया पाठ पढ़ा जाती है अगली परीक्षा के लिए। इस परीक्षा में न कोई उत्तीर्ण होता है ना अनुत्तीर्ण। हर परीक्षा है एक नए अनुभव के लिए।

ज़िन्दगी है तो अनुभव हैं। कुछ अच्छे हैं तो कुछ कटु। अच्छे अनुभव हम सहेज कर रखते हैं, किसी के साथ ज्यादा बांटते नही है। लोगों के अंदर ऐसी धारणा है कि इन्हें साझा करने से उनका कोई निजी अहित हो जायेगा। बुरे अनुभव हम पूरे आत्म विश्वास के साथ साझा करते हैं, जैसे ये बांटने से कम हो जाएंगे। अनुभव कैसे भी हो वो हमारे निजी हैं लेकिन साझा हर तरह के अनुभव करने चाहिए, शायद वो किसी और के लिए किसी और परीक्षा में काम आ सके, या जिस से आप साझा कर रहे हैं वो आपको उसका कोई नया दृष्टिकोण दे सके जो आपने देखा ही नही कभी और अच्छा अनुभव बुरे में या बुरा अनुभव अच्छे में तब्दील हो जाये। बस ये ख्याल रखें कि अपने अनुभव किसी पर मढ़ें नही, क्योंकि सभी का प्रश्न पत्र अलग है।

आपके निजी अनुभवों से आपकी ज़िंदगी जीने के तरीके बदलते है। जैसे अगर आपको बचपन मे यातनाएं मिली हो या प्रेम कम मिला हो तो आप बड़े होने पर निष्ठुर और कठोर हो जाते हैं। आप अपने आस पास के लोगों को और उनके व्यवहार को सन्देहपूर्वक देखते हैं। इन्ही वजहों से आप कुछ अच्छे मित्र, सहयोगी और रिश्तेदारों से दूर हो जाते हैं और आपकी कठोरता और बढ़ती जाती है क्योंकि आपको अभी भी प्रेम नही मिल रहा लोगो से।
वहीं अगर आपको बचपन मे भरपूर प्रेम मिला हो तो बड़े होने पर आप मृदुल और सौम्य व्यक्तित्व के मालिक बनते हैं और लोगों को आपसे सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। आप लोगों से मिलनसार रहते हैं , उनको संदेह की नज़रों से नही देखते तो वो भी आप पर भरोसा जताते हैं। यहां प्रेम पनपता है और बढ़ता रहता है। दोनो ही तरह केस में अपवाद भी होते हैं और वो अपवाद उन बहुत छोटे छोटे अनुभवों से बनते हैं जो इतने व्यापक नही है।

आपको अपने आसपास ऐसे बहुत लोग मिलेंगे जो अपने अनुभवों को आप पर जबरदस्ती मढ़ना चाहेंगे। हो सकता है कि किसी ने आपसे ज्यादा दुनिया देखी हो, किसी ने आपसे ज्यादा किताबें पड़ी हो, किसी का आपसे ज्यादा लोगो से मेल जोल हो या किसी की उम्र आपसे ज्यादा हो। लेकिन इस से ये बात साबित नही होती कि वो जो अनुभव आपसे साझा कर रहा है वो 100 प्रतिशत सही है और आपके ऊपर भी ये उसी तरह काम कर जाएगा। ये चुनाव भी आपको ही करना है कि किसके अनुभवों की आपको जरूरत है किसके नही। और ये आप अपने अनुभवों के आधार पर ही तय करते हैं। अपने व्यक्तित्व (individuality) को बनाये रखना भी उतना ही अहम है जितना किसी से सीखने में है। 

अगर आप गहराई में जाएंगे तो अहसास होगा कि किसी कार्य को सीखना उसे करने से ज्यादा मुश्किल है। थोड़ा अटपटा है लेकिन समझाने की कोशिश करता हूँ। अगर आप किसी कार्य को करना चाहते हैं तो क्या चाहिए "अनुभव"। जब आप किसी कार्य को सीखना चाहते हैं तो क्या चाहिए ,"लगन" "समय" और "धीरज"। तो आपको सीखने के लिए तीन चीजे चाहिए जो थोड़ी मुश्किल हैं लेकिन जैसे ही आप सीख जाते हैं वो अनुभव में तब्दील हो जाता है लगातार करने से और उस कार्य को करने के लिए अब आपको कोई कठिनाई नही होगी। पहला कदम "सीखना" है दूसरा कदम "करना" है, बिना पहले कदम के दूसरा कदम रखना मुश्किल है क्योंकि पहला कदम मजबूत होगा तभी आप दूसरे कदम को बढ़ा पाएंगे।

सीखना, करना और अनुभव बटोरना ही ज़िन्दगी है ओर इसी बीच जो घट जाए वह ज़िन्दगी है इसीलिए ज़िन्दगी से बड़ा कोई गुरु नहीं।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक अधूरी कविता

दिन और रात

Me (L)on(e)ly