बुलबुल (मेरी नज़र से)
नेटफ्लिक्स पर नई फिल्म आयी है बुलबुल। अनुष्का शर्मा द्वारा निर्मित ये फ़िल्म जिज्ञासा जगाती है अपनी अनोखी शैली की वजह से। 90 मिनट की ये फ़िल्म छोटी जरूर है लेकिन बड़ी बात कहने की कोशिश करती नज़र आती है।
फ़िल्म शुरू होती है एक बाल विवाह से जहां बंगाली रीति रिवाज से शादी हो रही है, जिस बच्ची "बुलबुल" की शादी हो रही है वो काफी हद तक इस सब से अनजान है और उसके लिए ये खेल सरीखा है। एक बहुत ही उम्दा सीन में ये समझाया जाता है कि बिछिया का क्या मतलब है। थोड़ी ही देर में उस बच्ची को समझ आजाता है कि उसके साथ कुछ गलत हुआ है जिसमे उसकी शादी उसके हमउम्र "सत्या" के साथ नही हुई है, "इंद्रनील" ठाकुर से हुई है। इंद्रनील का एक हमशक्ल भी है "महेंद्र" जो मानसिक रोगी है और उसकी शादी विनोदिनी से हुई है।
अगले सीन में कहानी 20 साल आगे चली जाती है, जिसमे सत्या लंदन से पढ़ाई करके वापस आता है। लेकिन अब हवेली में सब बदल चुका है। इंद्रनील घर छोड़कर जा चुका है, महेंद्र की हत्या हो चुकी है, विनोदिनी अब विधवा की ज़िंदगी गुज़र रही है ओर बुलबुल अब राज कर रही है हवेली पर। और इसके बाद शुरू होता है हत्यायों का सिलसिला और चुड़ैल से जुड़ी कहानियां। इस से आगे कुछ भी बताना फ़िल्म की कहानी के साथ अन्याय होगा।
फ़िल्म में लाल रंग बहुत कुछ बयान करता है। ये रंग डर , प्रेम, उत्सव, कत्ल , पूजा सभी को बखूबी दर्शाता है फ़िल्म में। हां चाँद भी लाल है और दूधिया रोशनी को भी लाल रंग दिया है और उसका भी उद्देश्य है। ये देखने मे संजय लीला भंसाली के किसी फ़िल्म जैसी लगती है , जिसमे रंगों को भी कहानी का पात्र बना दिया गया है। हर सीन को देखने मे सुंदर बनाने की कोशिश की है जो काफी हद् तक कारगर भी होती है।
इस सब के बावजूद फ़िल्म अपने उद्देश्य से भटकी हुई लगती है, खासकर दूसरे भाग में। महिलाओं के दर्द को बयां करना चाहती है और नारीवाद का झंडा बुलंद करने में कसर छोड़ जाती है। सब-प्लाट में गहराई नज़र नही आती है और अंत इस फ़िल्म की सबसे कमजोर कड़ी है, जहां वो इतना कुछ बयान करना चाहती है और एक भुतहा फ़िल्म की कमियों से बच नही पाती। बोर नही करती है कहीं भी लेकिन अंत मे आप थोड़ा निराश हो जाते हैं जिस तरह से ये खत्म होती है। राहुल बोस, अविनाश तिवारी और पाओली डैम ने अच्छा काम किया है और तृप्ति डिमरी लाजवाब है।
अन्विता दत्त की वजह से काफी उम्मीदें थी, थोड़ी निराशा तो हुई। आपको ये रिव्यु थोड़ा कंफ्यूजिंग लगेगा, फ़िल्म भी वैसी ही है।

टिप्पणियाँ