सुशांत सिंह राजपूत को श्रद्धांजलि
सुशांत सिंह। उम्र 34 साल। क्या ये वाक़ई उम्र है उम्मीद छोड़ देने की, हार मान लेने की, इस दुनिया से विदा ले लेने की। क्या मनः स्तिथि होगी ये सोच कर ही उदासी घेर लेती है। वो इंसान जिसके ऊर्जावान होने के उदाहरण दिए जाएं और उसे ये लगे कि उसकी ये ऊर्जा भी उसके जीने तक का सहारा नही बन सकती। वो इंसान जिसने पढ़ाई लिखाई में कीर्तिमान स्थापित किये हो और उसे लगे कि वो सबसे पीछे रह गया है।जिसे अपने पहले ही पायदान पर सबसे उम्दा नए कलाकार के लिए पुरिष्कृत किया जाए उसे कैसे लग जाता है कि उसका इस फ़िल्म जगत में कोई स्थान नही। कब ये लगने लगता है कि मेरे घर परिवार, दोस्त यार, सहयोगी इन सब की न मुझे जरूरत है ना इन्हें मेरी। किस घड़ी में ये लग जाता है कि मेरे लिए अब इस से आगे बढ़ने के लिए कुछ नही।अब इस से आगे जिंदगी के कोई माने नही।ऐसे कौन से पल में ये ख्याल घर कर जाता है कि "अब बस"।
जवाब आसान नही है, क्योंकि हमने ऐसे लोगो से पूछा ही कब।कब पूछा किसी को कि वो किस स्तिथि से गुज़र रहा है। जाने अनजाने हम भी ऐसी स्तिथि बनाने के लिए जिम्मेदार हैं। हम जाने अनजाने किसी के लिए बहुत कटु हो जाते हैं, और जब ऐसे लोगो की संख्या उनसे ज्यादा हो जाती है जो आपके साथ हर समय साथ खड़े हैं तो इंसान प्रश्न करने लगता है अपने आप से कि क्या वाकई में मैं गलत हूँ, क्या मैं कुछ भी अच्छा नही कर रहा , क्या मेरे होने न होने के कोई मायने नही, क्या इस दुनिया मे ऐसा कुछ भी नही जिसके लिए जिया जाए। क्या मेरे सपने खत्म हो चुके हैं।
आजकल ये चलन में है कि इंसान थोड़ी तरक्की करते ही अपना वातावरण बदल लेता है, जो लोग उस से आत्मीयता रखते हैं वो कहीं पीछे छूट जाते हैं, आप अपने को उन लोगों के परिवेश में ढालने की कोशिश में लग जाते हैं जो आप हैं नही क्योंकि आप उन लोगो को इम्प्रेस करना चाहते हैं जिस से की आप उस परिवेश में प्रवेश कर सकें। उस परिवेश में एक खालीपन है क्योंकि आत्मीयता नही है। वहां लगातार आगे बढ़ने की होड़ है, वहां लगातार तुलना है, वहां वो सब कुछ है जो आपको चुम्बक की तरह खींचेगा और एक झटके में लोगो से अलग कर देगा ,आप अब अकेले हैं उस परिवेश में और एक छोटी सी चीज भी आपको गिराने के लिए काफी है। आप अपना सपोर्ट सिस्टम पहले ही कमज़ोर कर चुके हैं, तो चोट अच्छी लगेगी। हमें थोड़ा बदलने की जरूरत है, आगे बढिए लेकिन जड़ नही छोड़िये जिस से कि जब कोई डाली गिरे तो भी आप मजबूती से खड़े रहे।
लोग कहते हैं कि जो आत्महत्या करते हैं वो डरपोक होते हैं, मैं नहीं मानता। बहुत हिम्मत चाहिए ये करने ले लिए, अगर आसान होता तो कोई भी कर लेता। अगर किसी इंसान को ये लगने लगे कि मौत सबसे आसान है और ज़िन्दगी जीना मुश्किल तो आपको उसकी मुश्किलों का अंदाज़ा नही। मैं एक बार ज़िन्दगी में ऐसे मोड़ से गुज़र चुका हूँ जहां मौत सबसे आसान लगने लगी थी लेकिन साथ में जो दोस्त थे उन्होंने अनजाने में ही सही लेकिन मुझे सम्हाल लिया था। उन्हें शायद पता भी नही कि उन्होंने ऐसा किया है लेकिन यही दोस्ती है, ये वो कर जाते हैं जो आपके सगे संबंधी, भाई बहन, मां बाप तक नही कर पाते। उनके साथ होने से ही कई गलत चीज़ें पलट जाती हैं, अपने आप। इसका मतलब ये कतई नही हैं कि माँ बाप भाई बहन सगे संबंधी कोई नही है, सबकी अपनी भूमिका है लेकिन एक सच्चे दोस्त की भूमिका कोई भी अदा नही कर सकता।
किसी के सच्चे दोस्त बनिये, अगर आप चाहते हैं कि आपका कोई सच्चा दोस्त नही है तो आप किसी के बनिये, आपको कोई न कोई अच्छा दोस्त मिल जाएगा। जो आपका आकलन नही करेगा, जो आपकी दूसरो से तुलना नही करेगा, जो आपके लिए चुपचाप वो करता रहेगा जो आपको खुद भी पता नही चलेगा।
अगर आज उसके पास भी एक ऐसा सच्चा दोस्त होता तो एक 34 साल का आंखों में सपने लिए जो धीमे धीमें रास्ता बना रहा था उसे ये ना लगता कि वो डेड एन्ड पर पहुंच गया है।
"सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनो का मर जाना।" ~पाश
श्रद्धांजलि सुशांत सिंह राजपूत को, तुम्हारी असमय विदाई ने मुझे बदल दिया।
टिप्पणियाँ
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Shubhi
Dr.Swati Srivastava