आपाधापी

जीवन की इस आपाधापी में, अपना घर ही भूल गए, 
सारे अफसाने याद रहे,अपना घर ही भूल गए. 

घर छूटा तो सब छूटा, मुझसे तो मेरा रब भी रूठा, 
परायों को अपना माना , और अपनों का साथ छूटा. 
परायों को अपना बनके , मेरा दिल ज़र्रा -ज़र्रा टूटा, 
टूटा दिल ही याद रहा, दिल का दर्द ही भूल गए.... 
जीवन की इस आपाधापी में..... 

जिसे दिल दिया अपना,वो क्यूँ बना हरजाई, 
मेरी अश्रुधारा में, क्या नहीं थी सच्चाई. 
मेरा दर्द-ए-मुहब्बत, क्यूँ वो समझ नहीं पाई, 
इस मर्म को जान ना सके और अपना धर्म ही भूल गए.... 
जीवन की इस आपाधापी में...... 

इस दिल के दर पर है दर्द का पहरा, 
शायद इसीलिए इसमें कभी कोई नहीं ठहरा. 
इस दिल में अब कोई घर ना कर पायेगा, 
इसके दर से तो अब वो भी वापस जायेगा. 
इस गम से तो अपना रिश्ता पुराना है,
अब तो अपना कर्म और धर्म ही निभाना है. 
अपने हक़ ही केवल याद रहे, फर्ज सारे ही भूल गए.... 
जीवन की इस आपाधापी में.....

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